Monday 14 May 2012




ये रिश्ता....

हमेशा....सोचा मैंने....
क्या...
हमारे जैसा रिश्ता....सिर्फ खयालो...में ही होता है....

एक वो दौर...था....
जब....
मेरी हर बात....थी बस मुझ तक...
महफूज़....
पर...अब चाहती हूँ....
तुम्हे...सब कुछ बताना...
जो शायद मैं खुद भूल चुकी...थी....
क्योकि...चाहती हूँ...
तुम जानो और समझो मुझको...!

क्या...
ये रिश्ता...सिर्फ खयालो में बसता है....
पर अब मुझे लगता....है....की...
ये रिश्ता खयालो से भी बेहतर है....!!

प्यार....
बस एक शब्द भर था...
मेरे लिए....
जो...मैं समझ ही नहीं...पायी कभी....!

पर....
ये...तो कस्तूरी....की..तरह....
मेरे ही...अन्दर ही...
रचा बसा था....
मेरी हर सांस...में....
मेरे एहसासों में....
मेरी रगों में....
अब ये दौड़ ....रहा है....
लहू...की....तरह....!!

तू....और तेरा प्यार...
अब....सब...
तेरे लिए...!!!

पता है...ये रिश्ता....
इस दुनिया का नहीं...है....
ये...हर...बंधन से परे...
एक....खूबसूरत हकीकत...है...
मेरी और तुम्हारी.....!!!!!

Dr Udeeta Tyagi

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