Sunday 31 August 2014

आज फिर कुछ लिखने का मन है....
तुम ही...देखो ना....कैसी उलझन है....
मेरे शब्द...मुझ से रूठे हैं...ऐसा लगता है
या...खेल रहे हैं आँख-मिचौली मुझ से
पता नही....
आज फिर कुछ कहने का मन है....
तुम ही...देखो ना....कैसी उलझन है.... 
कई बार यूँ...लगता है
मेरे शब्द...तुम्हारे पास सम्भले रखें हैं...
या...तुमने ही कही छुपा रखें हैं
पता नहीं....
आज फिर तुम्हारे साथ चलने का मन है...
तुम ही...देखो ना....कैसी उलझन है.... 
चलो...क्यूँ ना मिल कर...इन शब्दों को मनाये
या...दोनों मिल के उन्हें ढूँढ लाये
पता नहीं....
देखो ना...कितनी उलझन है....?
उलझी हूँ....मैं
और कहीं ना कहीं....मुझमें उलझे हैं...मेरे शब्द
तुम...इस उलझन को सुलझा क्यूँ नही देते...??
मेरे शब्द...मुझे लौटा क्यूँ नहीं देते....???
उन्हें वापस....भेज दो ना....???
फिर एक बार....मेरे दिल का पता दे कर....
इस बार....संभाल के रखूंगी....मना के रखूंगी....दिल से लगा के रखूंगी...
उफ्फ्फ....
देखो ना...फिर....उलझ गयी...मैं
क्या करूँ...
आज फिर कुछ लिखने का मन है....
तुम ही...देखो ना....कैसी उलझन है....!!!!!

Dr Uditaa Tyagi