Monday 7 May 2012





तेरे आँगन में...खिलना चाहती थी...
कली बन कर...
तेरी बगिया में...चहचहाना चाहती थी...
चिडिया बन कर....
तेरे घर को महकाना चाहती थी...
रिश्तो की खुशबू बन कर....
पर....
माँ....तूने मुझे जन्म ही नहीं दिया...

बहन बन कर...भैया की कलाई पर राखी बांधती....
बाबा की आँखों में....दो आँसू...का कारण बनती....
जिस घर तू ब्याहती... उसे स्वर्ग बनाती...
किसी की अर्धांग्नी बनती...तो उसका जीवन सम्पूर्ण करती...
फिर...किसी दिन...तेरी तरह मैं भी...माँ...बनती एक नयी ज़िन्दगी को इस संसार में लाती...
पर....
माँ....तूने मुझे जन्म ही नहीं दिया...
बस माँ...सिर्फ इतना बता दे....
कि....क्या मैं इतनी बुरी थी....???

रहने दे...माँ...
तेरी आँखों से तेरी बेबसी टपकती है...
तेरी आहों से तेरी उदासी झलकती है...
तू ...कुछ मत कह...पर मैं सब समझ सकती हूँ...
तेरी ही....बेटी हूँ न माँ...
पर....पता नहीं...तूने मुझे जन्म क्यों नहीं दिया....माँ...!!!!

2 comments:

  1. HEART TOUCHING LINES AND THIS POEM MOTIVATES TO ALL,BUT SPECIALLY FOR LADIES............


    M AUR MERE FRIENDS JAB BHI EK LADKI KO JANAM DENE KE TOPIC PER BAT KARTE H TO KOE LADKA YE NAHI BOLTA KE LADKI KO JANAM NAHI DENA CHAHIYE .............
    BUT JAB M YE BAT KAHA LADIES ME DISCUSS KARATA HU TO BO SAB LADKE KO JANAM DENE ME INSTERSTED HOTI H JABKI BE DE BHI EK LADKI THI KABHI PHIR BHI LADKIYO SE ETNI NAFARAT......YE BAT MERI AAJ TAK SAMAJ ME NAHI AAYI

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  2. Aap bilkul thik kah rahe hain Ekant...Bahut jyada mehnat kerni padegi is soch ko badalne ke liye...

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