एक ख़त....
जो तुम्हे कभी दे ही नहीं पायी...
हर पल का गवाह...जो कभी भी हमारे बीच था...
हर वो वादा...हर वो कसम..जो हमने खायी, एक दूजे के साथ...
हमारे प्यार और तकरार का हिसाब...शिकायतों का पुलिंदा...
एक ख़त...
जो मैंने लिखा तो रोज़...
पर तुम कभी पढ़ नहीं पाए.....!
मेरे कॉपते हाथों को..थामे..तुम्हारे हाथों..की गर्माहट, को समेटे...
हमारे प्यार की खुशबू से महकता...
मेरी बेकाबू साँसों का हिसाब...
तुम्हारी छुअन की गर्मी से दहकता...
एक ख़त...
जो कभी मंजिल तक पंहुचा ही नहीं.....!!
मेरी जुबान...मेरा प्यार...मेरी शिकायत...
मेरा वजूद...मेरा सब कुछ...
एक ख़त....
जान....तुम क्यों नहीं जान पाते ...
की मैंने इस ख़त में क्या लिखा है...?
क्यों लिखा है...ये ख़त...
मैं खुद से लड़ती हूँ...
रोज़...हर लम्हा...हर पल...
कि...शायद...तुम कभी तो जान जाओगे...
पर कैसे...???
ये ख़त...
एक ख़त...
जो...मैंने कभी तुम्हे दिया ही नहीं ...!!!!!
Dr Udeeta Tyagi
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