कुछ यूँ....गुज़र रही थी...
कुछ तन्हा...कुछ बेरंग....गुज़र रही थी....
बे-एख्तियारी का ये आलम था....
न चैन...न सुकून....बस बेचैनी...हर सू...
कुछ यादें...कुछ लम्हे जो गुज़र गए...पर...अपने निशाँ....
मेरे दिल...पे...खरोंच के लिख गए....
ज़िन्दगी भर का दर्द...
कुछ अजीब सी कैफियत...कड़वी..कसैली...
दिल बदगुमान... हर खूबसूरत...शै...से...
पर...इस ठहरे...पानी की झील...में...
वो जाने...कहाँ से...आई...
एक बेदर्द पत्थर....जिसने....
इस शांत...झील में तूफ़ान...उठा दिया...
बेदर्द...,शरीर...,शोख...., जादू....,
खुशबू...,
जुस्तजू...,नूर...
शायद...पहेली...???
कुछ टूटी सी ...कुछ बिखरी...सी...
कुछ सिमटी...सी...कुछ न जाने क्या...
हर बंदिश....से परे...
न जाने कैसे... नए रंग....बिखराती...
एक नए रिश्ते....की आहट जगाती...
वो जाने क्यों चली आई है...
संजीविनी बन...कर...मुर्दा...शरीर में...जान फूकने...
हाँ...वो आई है...रौशनी की किरण...न-उमीदी के अँधेरे में....
एक नयी कहानी ले कर.....!!!
Dr Udeeta Tyagi