तुम क्या हो...क्यों हो...???
तुम को देखता हूँ....और देख कर सोचता हूँ....
कि...तुम क्या हो ...क्यों हो ... ???
तुम ...शायद ..एक खवाब हो...जिसे सिर्फ बंद आँखों से देखा जा
सकता है....
जो आँखे खुलते ही ओझल हो जाता है ...
हाँ....तुम मेरा खवाब हो... जिसे मैंने हमेशा देखा...महसूस किया...चाहा...
पर जब भी छूना चाहा....तुम ओझल हो गयी ...
तुम....शायद कोई परी हो ....खूबसूरत जादू ....हर खवाहिश को पूरा
कर सकने वाली...
और उसके पूरा होते ही गायब.....
हाँ.... तुम मेरी परी हो ... ख़ूबसूरत....जादू...मेरी हर खवाहिश...कि
हकीकत...
और... फिर गायब...जैसे कभी थी ही नहीं....
तुम मेरी...प्यास हो...
जो कभी बुझती ही नहीं...
तुम मेरी.... आँखों की नींद हो....
जो मुझ से कोसों दूर है...
तुम मेरी...सब कुछ बन गयी हो...
नहीं जानता...की तुम्हें पता भी है या नहीं....
बस....तुम को देखता हूँ....और देख कर सोचता हूँ....
मैं नहीं जानना चाहता...कि तुम क्या...क्यों हो...???
इतना जानता हूँ....कि तुम मेरी हो....सिर्फ....मेरी हो....
!!!!!!
तुम मेरी.... आँखों की नींद हो....
ReplyDeleteजो मुझ से कोसों दूर है...
उम्द्दा ...जिंदाबाद ..
ग्लैमर कि चका-चौंध में घिरे होने के बावजूद भी काव्य आप में बरकरार है....ये बहुत अच्छी बात है ...
कविता आप में हमेशा ज़िन्दा रहे .....
आमीन
Shukriya...Sharma ji...:-)
ReplyDeleteSapna!
ReplyDeleteHaan sapna hi hai sab
Na jane toot jaaye kab
Tum bhi rk sapna ho
ReplyDeleteAayi ho lubhane ke liye
Chhod jaogi
Toot jane ke liye