Saturday 28 April 2012






पर न जाने क्यों....


इन आँखों मैं बंद है कुछ ख्वाब .......
अनदेखें ... अनजाने ... अजनबी....

चाहते है ये मेरी पलकों पे सजना ......
अभी तक बंद है ऑंखें और ख्वाब है गुम....
पर न जाने क्यों ... ये चाहते हैं इस दुनिया को देखना......
मेरी आँखों से....
.
बरसों तक छुपाये रखा इन्हे......
दिल मैं बसाये रखा ......
पर न जाने क्यों ... अब ये होने चाहते है नुमाया....
मेरी बातों से....

ये हैं वो अनमोल मोती.....
जो बंद रहे मेरे दिल की सीप मैं.....
पर न जाने क्यों ... अब ये हार होना चाहते हैं ........
मेरे जिस्म से........

आंखें अभी भी बंद है......
ख्वाब पल रहें हैं......
.
पर न जाने क्यों ...

नहीं जानती....
आंखें खोल के .... इनके बंधे पर खोल दूँ..
उड़ जाने दूँ .. इन्हे ... जिन्हें सारी उमर संभाले रखा....!!!

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