Thursday 9 August 2012


 
 
करवटे....

किसी की यादों में रात भर करवटें बदली.....

सुबह खुली आँखें तो.....
सूरज की तेज तपिश ने आंखों को जलाया,
और कहा....मुझ जैसे बन जाओ.....
अब उठ जाओ.....
आसमान ने मुझ से कहा.....
ऊँचें उठो.....
मेरी तरह, और ऊँचाइयों को छू लो....
हवा बोली,
बहो.....!
मेरी तरह...बिना किसी की परवाह किए.....
पर, तुम्ही कहो न.....
जिसकी आँखों में बसी हो....
उसकी ज़िन्दगी की चमक....
उसे सूरज क्या भाए...... ?
जो उठ चुका हो...
इस दुनिया के हर बंधन से उपर....
उसे ये आसमान क्या लुभाए.... ??
और....जो हर वक्त बहता हो...
सांसें बन के अपने प्यार में....
वो हवा के साथ क्यों बह जाए....???
अब...तो कुदरत की हर शै....
जैसे ढल गयी है,
उसके रूप में...रंग में....आकार में.....
अब...तुम्ही कहो.....
क्या......
बाकी रहा इस जहाँ में.....!!!

Dr Udita Tyagi

3 comments: